पीईकेबी खदान के लिए रास्ता साफ....
रुचि गुप्ता
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की बिलासपुर बेंच ने कल राजस्थान सरकार की महत्वपूर्ण खनन परियोजना के खिलाफ अभियान चलाने वाले तत्वों की एक अन्य संयुक्त याचिका को खारिज कर दिया है। अदालत ने याचिका को खारिज करने के कई कारणों का हवाला दिया और मुख्य रूप से कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि केंद्रीय पर्यावरण और वन व ट्राइबल अफेयर्स के मंत्रालयों ने "नॉन-फॉरेस्ट्री उपयोग से जुड़े प्रस्ताव के संबंध में 1136 हेक्टेयर वन भूमि के शेष क्षेत्र में, फेज- II का खनन कार्य शुरू करने के लिए स्वीकृति दी है।
इसके अलावा उच्च न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर एक स्पेशल लीव पिटीशन (एसएलपी) "विचाराधीन है" और इसकी सुनवाई 13 अक्टूबर 2022 के लिए तय की गई है। यहां इस पर भी ध्यान देना जरुरी है कि राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (आरआरवीयूएनएल) के माइनिंग प्रोजेक्ट्स में बाधा पैदा करने के लिए, राजनीति से प्रेरित तत्वों ने अदालतों, सोशल मीडिया और समाचार पोर्टल्स पर बिग बजट कैंपेन्स चलाए हैं।
अदालत का यह फैसला आलोचकों के लिए एक बड़ा झटका है। क्योंकि बिलासपुर हाई कोर्ट ने मई में राजस्थान सरकार द्वारा अपने निगम के लिए भूमि अधिग्रहण के खिलाफ पांच याचिकाओं को खारिज कर दिया था, जिन्हे विभिन्न सेंट्रल और स्टेट अथॉरिटीज से सभी जरुरी अनुमतियाँ प्राप्त थीं। इसी प्रकार, साधन संपन्न आलोचक भी सुप्रीम कोर्ट में कानूनी लड़ाई हार गए हैं। इसलिए राजस्थान की ऊर्जा सुरक्षा का विरोध करने वाले, राजस्थान सरकार के हितों के खिलाफ गलत सूचना फैलाने के लिए, सोशल मीडिया कैम्पेनिंग पर भारी खर्च कर रहे हैं। इस मामले की क्रोनोलॉजी का हवाला देते हुए, बिलासपुर हाई कोर्ट ने कहा कि छत्तीसगढ़ राज्य सरकार ने मार्च 2012 में परसा ईस्ट केते बासन (पीईकेबी) ब्लॉक के लिए वन भूमि के डायवर्जन को मंजूरी दी थी, जिसका कुछ ग्रामीण समूहों द्वारा विरोध किया गया था। लेकिन फरवरी 2022 में, "पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (केंद्रीय) ने आरआरवीयूएनएल के पक्ष में नॉन-फॉरेस्ट्री उपयोग से जुड़े प्रस्ताव के संबंध में, शेष 1136 हेक्टेयर वन भूमि में फेज- II का खनन कार्य शुरू करने की मंजूरी दी थी। कल के आदेश और मई में पारित आदेश में, अदालत ने यह भी कहा कि परसा के लिए भी नियमों का विधिवत पालन किया गया था। पेसा एक्ट के लागू होने पर, याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि केंद्र और राज्य सरकारें किसी भी उद्देश्य के लिए भूमि अधिग्रहण की अनुमति नहीं दे सकती हैं। इस पर अदालत ने कहा कि व्यापक जनहित और विशेष परिस्थितियों के मामले में केंद्र सरकार ऐसा करने की हकदार है।
छत्तीसगढ़, देश में भारत का सबसे बड़ा कोयला उत्पादक राज्य है और देश के बाकी हिस्सों के लिए थर्मल पावर का प्रमुख स्रोत रहा है। ऐसे में पीईकेबी ब्लॉक में खनन का पहला चरण, बिना किसी कठिनाई के किया गया था, जबकि दूसरे चरण के खनन को, खुद के पर्यावरणविद् होने का दावा करने वाले कुछ तत्वों द्वारा, सरगुजा जिले के ग्रामीणों को गुमराह करने और भड़काने के कारण, भारी बाधा का सामना करना पड़ा है। दिलचस्प बात यह है कि इन आलोचकों में से किसी ने भी अपने आरामदायक घरों से बिजली कनेक्शन नहीं हटाया है, जबकि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ऐसे लोगों को राजस्थान के एनर्जी प्रोजेक्ट्स की आलोचना करने से पहले, खुद के घरों से बिजली की खपत बंद करने के लिए कहा था।
आलोचकों के विरोध को ध्यान में रखते हुए, राजस्थान को 15 अगस्त को खनन परियोजना को रोकना पड़ा, जिससे राजस्थान में बिजली संकट की स्थिति पैदा हो गई थी। इससे जहां एक तरफ सरगुजा के लोगों की नौकरी चली गई है, वहीं दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ को भी रॉयल्टी और टैक्स के माध्यम से भारी राजस्व का नुकसान हो रहा है। मेधा पाटकर जैसे प्रोफेशनल एक्टिविस्ट ने जून के अंत में रायपुर और सरगुजा का दौरा किया और एक बड़े कार्बन फुटप्रिंट का हवाला देते हुए, राजस्थान सरकार के पीईकेबी ब्लॉक का विरोध किया। हालांकि, पाटकर ने तब एंटी-राजस्थान मूवमेंट से खुद को अलग कर लिया, जब उन्होंने पीईकेबी ब्लॉक के लिए स्थानीय लोगों के समर्थन को महसूस किया, जिससे हजारों प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार पैदा हुए हैं। इसके अलावा, आरआरवीयूएनएल, पीईकेबी ब्लॉक के आसपास, सीएसआर प्रोजेक्ट्स के माध्यम से सशक्तिकरण, स्वास्थ्य, और कॉस्ट फ्री अंग्रेजी मीडियम स्कूल के जरिए, शिक्षा व दूसरे कामों पर भारी खर्च कर रहा है।
राजस्थान सरकार को छत्तीसगढ़ में तीन कोयला ब्लॉकों पीईकेबी, परसा और केते एक्सटेंशन को आरआरवीयूएनएल द्वारा चलाए जा रहे पावर प्लांट्स से 4400 मेगावाट बिजली पैदा करने के लिए आवंटित किया गया था। इन तीन खानों में से केवल पीईकेबी को चालू किया गया था, लेकिन यहां से खनन किया गया कोयला, राजस्थान की दैनिक बिजली आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है। ऐसे में अन्य दो खदानों को शुरू करने के लिए राज्य सरकारों द्वारा प्रयास किए गए और आरआरवीयूएनएल ने यह सुनिश्चित किया कि सभी कानूनी आवश्यकताएं और पर्यावरणीय मंजूरी, नियत समय में पूरी हो जाएं।
जाहिर है शेष दो खदानों के खुलने से, ग्रामीणों को रोजगार तथा आसपास के क्षेत्रों का चहुंमुखी विकास भी सुनिश्चित हो सकेगा। हाल ही में आसपास के कई गांवों के लोगों ने भी छत्तीसगढ़ और राजस्थान, दोनों सरकारों से खदानें शुरू करने तथा खनन विरोधी कार्यकर्ताओं और संकटमोचनों को अपने क्षेत्र से दूर रखने की अपील की है।