पन्ना, पवई, शासकीय माध्यमिक शाला नारायणपुरा में महान वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस जी की जयंती के अवसर पर शिक्षक सतानंद पाठक ने छात्र-छात्राओं को उनकी जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि आज ही के दिन 30 नवंबर सन 1885 ईस्वी को बंगाल में मेमन सिंह नामक स्थान पर जन्म लेने वाले जगदीश चंद्र बोस का जन्म भारत के महान वनस्पति एवं भौतिक शास्त्री तथा पादपक्रिया वैज्ञानिक थे। जगदीश चंद्र बोस ने कई महान ग्रंथ भी लिखे हैं, जिनमें से कुछ निम्नलिखित विषयों पर आधारित हैं, जैसे सजीव तथा निर्जीव की अभिक्रियाएँ (1902), वनस्पतियों की अभिक्रिया (1906), पौधों की प्रेरक यांत्रिकी (1926) इत्यादि।
जगदीश चंद्र बोस ने ग्यारह वर्ष की आयु तक गांव के ही एक स्कूल में शिक्षा ग्रहण की। उसके बाद ये कलकत्ता आ गये और सेंट जेवियर स्कूल में प्रवेश लिया। जगदीश चंद्र बोस की जीव विज्ञान में बहुत रुचि थी फिर भी भौतिकी के एक विख्यात प्रो. फादर लाफोण्ट ने बोस को भौतिक शास्त्र के अध्ययन के लिए प्रेरित किया। भौतिक शास्त्र में बी. ए. की डिग्री प्राप्त करने के बाद 22 वर्षीय बोस चिकित्सा विज्ञान की शिक्षा के लिए लंदन चले गए। मगर स्वास्थ्य के खराब रहने की वजह से इन्होंनेचिकित्सक (डॉक्टर) बनने का विचार छोड़ दिया और कैम्ब्रिज के क्राइस्ट महाविद्यालय से बी. ए. की डिग्री ले ली।
जगदीश चंद्र बोस वर्ष 1885 में स्वदेश लौट कर आये और भौतिक विषय के सहायक प्राध्यापक के रूप में प्रेसिडेंसी कॉलेज में अध्यापन करने लगे। यहां वह 1915 तक कार्यरत रहे। उस समय भारतीय शिक्षकों को अंग्रेज शिक्षकों की तुलना में एक तिहाई वेतन दिया जाता था। इसका जगदीश चंद्र बोस ने बहुत विरोध किया और तीन वर्षों तक बिना वेतन लिए काम करते रहे, जिसके कारण उनकी आर्थिक स्थिति खराब हो गई और उन पर काफी कर्ज भी हो गया था। इस कर्ज को चुकाने के लिये उन्होंने अपनी पुश्तैनी जमीन भी बेच दी। चौथे वर्ष जगदीश चंद्र बोस की जीत हुई और उन्हें पूरा तन दे दिया गया। एक बहुत अच्छे शिक्षक भी थे, वह कक्षा में पढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर वैज्ञानिक प्रदर्शनों का प्रयोग करते थे। बोस के ही कुछ छात्र सत्येंद्रनाथ बोस आगे चलकर प्रसिद्ध भौतिक शास्त्री बने। प्रेसिडेंसी कॉलेज से सेवानिवृत्त होने पर 1917 ई. में इन्होंने बोस रिसर्चनिदेशक रहे। प्रयोग और सफलता जगदीश चंद्र बोस ने सूक्ष्म तरंगों (माइक्रोवेव) के क्षेत्र में वैज्ञानिक कार्य तथा अपवर्तन, विवर्तन और ध्रुवीकरण के विषय में अपने प्रयोग आरंभ कर दिये थे। लघु तरंगदैर्ध्य, रेडियो तरंगों तथा श्वेत एवं पराबैंगनी प्रकाश दोनों के रिसीवर में गेलेना क्रिस्टल का प्रयोग बोस के द्वारा ही विकसित किया गया था। मारकोनी के प्रदर्शन से 2 वर्ष पहले ही 1885 में बोस ने रेडियो तरंगों द्वारा बेतार संचार का प्रदर्शन किया था। इस प्रदर्शन में जगदीश चंद्र बोस ने दूर एक घण्टी बजाई और बारूद में विस्फोट कराया से था। आजकल प्रचलित बहुत सारे माइक्रोवेव उपकरण जैसे वेव गाईड, ध्रुवक, परावैद्युत लैंस, विद्युतचुम्बकीय विकिरण के लिये अर्धचालक संसूचक, इन सभी उपकरणों का उन्नीसवी सदी के अंतिम दशक में बोस ने अविष्कार किया और उपयोग किया था।
बोस ने ही सूर्य से आने वाले विद्युत चुम्बकीय विकिरण के अस्तित्व का सुझाव दिया था जिसकी पुष्टि 1944 में हुई। इसके बाद बोस ने, किसी घटना पर पौधों की प्रतिक्रिया पर अपना ध्यान केंद्रित कर दिया। बोस ने दिखाया कि यांत्रिक, इंस्टिट्यूट, कलकत्ता की स्थापना की और 1937 तक इसकेताप, विद्युत तथा रासायनिक जैसी विभिन्न प्रकार की उत्तेजनाओं में सब्जियों के ऊतक भी प्राणियों के समान विद्युतीय संकेत उत्पन्न करते हैं। 1917 में जगदीश चंद्र बोस को नाइट की उपाधि प्रदान की गई तथा शीघ्र ही भौतिक तथा जीव विज्ञान के लिए रॉयल सोसायटी लंदन के फैलो चुन लिए गए। बोस ने अपना पूरा शोधकार्य किसी अच्छे (महगें) उपकरण और प्रयोगशाला से नहीं किया था, इसलिये जगदीश चंद्र बोस एक अच्छी प्रयोगशाला बनाने की सोच रहे थे।